पंडित जी इन्हे आँखे फाड़ फाड़ के देख रहे थे. सावित्री जो पंडित जी जांघों पर बैठी थी उसके एक कूल्हे से पंडित जी का लंड रगर खा रहा था जिसके वजह से वह लंड की गर्मी को महसूस कर रही थी और इसके साथ ही साथ उसके शरीर मे एक मदहोशी भी छा रही थी. पंडित जी की साँसे जो तेज़ चल रही थी खड़ी चुचिओ को देखकर मानो बढ़ सी गयी. फिर पंडित जी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और सावित्री के नंगी चुचिओ पर रख ही दिया. सावित्री को लगा की उसकी बुर से कोई चीज़ निकल जाएगी. फिर दोनो चुचिओ को बैठे बैठे ही मीज़ना सुरू कर दिया. अब सावित्री जो अपनी आँखे शर्म से बंद की थी अब उसकी आँखे खुद ही बंद होने लगी मानो कोई नशा छाता जा रहा हो उसके उपर. अब उसे आँखे खोलकर देखना काफ़ी मुस्किल लग रहा था. इधेर पंडित जी दोनो चुचिओ को अपने दोनो हाथो से मीज़ना चालू कर दिया. सावित्री जो पूरी तरह से नंगे हो चुके पंडित जी की एक जाँघ मे बैठी थी अब धीरे धीरे उनकी गोद मे सरक्ति जा रही थी. सावित्री के सरीर मे केवल सलवार और चड्डी रह गयी थी. सावित्री का पीठ पंडित जी के सीने से सटने लगा था. सावित्री को उनके सीने पर उगे बॉल अपनी पीठ से रगड़ता साफ महसूस हो रहा था. इससे वह सिहर सी जाती थी लेकिन पंडित जी की चुचिओ के मीज़ने से एक नशा होने लगा था और आँखे बंद सी होने लगी थी. बस उसे यही मालूम देता की पंडित जी पूरी ताक़त से और जल्दी जल्दी उसकी चुचियाँ मीज़ रहे हैं और उनकी साँसे काफ़ी तेज चल रही हैं. अगले पल कुछ ऐसा हुआ जिससे सावित्री कुछ घबरा सी गयी क्योंकि उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसकी बुर से कोई गीला चीज़ बाहर आना चाह रहा हो. जिसके बाहर आने का मतलब था कि उसकी चड्डी और सलवार दोनो ही खराब होना. उसने अपनी बंद हो रही आँखो को काफ़ी ज़ोर लगा कर खोली और फिर पंडित जी की गोद मे कसमसा कर रह गयी क्योंकि पंडित जी अब सावित्री को कस पकड़ चुके थे और चुचिओ को बुरी तरह से मीज़ रहे थे. अभी यही सावित्री सोच रही थी कि आख़िर वह पंडित जी से कैसे कहे की उसकी बुर मे कुछ निकलने वाला है और उससे उसकी चड्डी और सलवार खराब हो जाएगी. यह सावित्री के सामने एक नयी परेशानी थी. उसे कुछ समझ मे नही आ रहा था.पंडित जी का प्रभावशाली व्यक्तित्व और कड़क मिज़ाज़ के डर से उनसे कुछ बोलने की हिम्मत नही थी. सावित्री को आज यह भी मालूम हो गया था कि लक्ष्मी चाची भी उनसे बच नही पाई थी. वह यही अफ़सोस कर रही थी की पहले ही उसने सलवार और चड्डी निकाल दी होती तो उसके कपड़े खराब ना होते. लेकिन वह यह भी सोचने लगी की उसे क्या मालूम की उसकी बुर से कुछ गीला चीज़ निकलने लगेगा और दूसरी बात यह की उसे लाज़ भी लग रहा था पंडित जी से. इसी बातों मे उलझी ही थी की पंडित जी का एक हाथ सावित्री के नाभि के पास से फिसलता हुआ सलवार के नडे के पास से सलवार के अंदर जाने लगा. चुचिओ के बुरी तरह मसले जाने के वजह से हाँफ रही सावित्री घबरा सी गयी फिर वैसे ही पंडित जी के गोद मे बैठी रही. पंडित जी का ये हाथ मानो कुछ खोज रहा हो और सावित्री के दोनो जाँघो के बीच जाने की कोशिस कर रहा था. सलवार का जरवाँ के कसे होने के वजह से हाथ आसानी से सलवार के अंदर इधेर उधर घूम नहीं पा रहा था. पंडित जी के हाथ के कलाई के पास के घने बॉल सावित्री के नाभि पर रगड़ रहे थे. पंडित जी की उंगलियाँ सलवार के अंदर चड्डी के उपर ही कुछ टटोल रही थी लेकिन उन्हे चड्डी मे दबे सावित्री की घनी झांते ही महसूस हो सकी. लेकिन यह बात पंडित जी को चौंका दी क्योंकि उन्हे लगा कि सावित्री के चड्डी काफ़ी कसी है और उसकी झांते काफ़ी उगी है जिससे चड्डी मे एक फुलाव बना लिया है. सलवार का जरवाँ कसा होने के वजह से पंडित जी का हाथ और आगे ना जा सका फिर उन्होने हाथ को कुछ उपर की ओर खींचा और फिर सलवार के अंदर ही चड्डी मे घुसाने की कोसिस की और चड्डी के कमर वाली रबर कसी होने के बावजूद पंडित जी की कुछ उंगलियाँ सावित्री के चड्डी मे घुस गयी और आगे घनी झांतों मे जा कर फँस गयी. पंडित जी का अनुमान सही निकला कि चड्डी के उपर से जो झांटें घनी लग रही थी वह वास्तव मे काफ़ी घनी और मोटे होने के साथ साथ आपस मे बुरी तरह से उलझी हुई थी. पंडित जी की उंगलियाँ अब सावित्री के झांतो को सहलाते हुए फिर आगे की ओर बढ़ने की कोसिस की लेकिन कमर के पास सलवार का जरवाँ कसे होने के वजह से ऐसा नही हो पाया.
सलवार और चड्डी के अंदर पंडित जी के हाथों के हरकत ने सावित्री की परेशानी और बढ़ा दी क्योंकि जो गीला चीज़ बुर से निकलने वाला था अब बुर के मुँह पर लगभग आ गया था. तभी एक राहत सी हुई क्योंकि अब पंडित जी का हाथ चड्डी से बाहर आ कर सलवार के जरवाँ के गाँठ को खोलने लगा और जरवाँ के खुलते ही पंडित जी के हाथ जैसे ही सलवार निकालने के लिए सलवार को ढीला करने लगे सावित्री ने भी अपने चौड़े चूतड़ को पंडित जी के गोद मे बैठे ही बैठे कुछ हवा मे उठाई ताकि सलवार को चूतदों के नीचे से सरकया जा सके और जाँघो से सरकाते हुए निकाला जा सके. पंडित जी ने मौका पाते ही सलवार को सरकाते हुए निकाल कर फर्श पर फेंक दिया. अब सावित्री दुबारा जब पंडित जी की गोद मे बैठी तब केवल चड्डी मे थी और उसकी जंघे भी नगी हो चुकी थी. बैठे ही बैठे सावित्री ने अपने चड्डी के उपर से बुर वाले हिस्से को देखी तो चौंक गयी क्योंकि बुर से कुछ गीला चीज़ निकल कर बुर के ठीक सामने वाला चड्डी का हिस्से को भीगा दिया था. गोद मे बैठने के वजह से पंडित जी का फंफनता लंड भी सावित्री के कमर से रगड़ खा रहा था. सावित्री की नज़र ज्योन्हि लंड पर पड़ती उसे लगता कि अब मूत देगी.
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