Wednesday 25 March 2015

Do Friends Ko Sex Ka Maza Dya Part-1

मैं आज 22 की हो गयी हूँ . कुछ बरस पहले तक में बिलकुल 'फ्लैट' थी .. आगे से भी .. और पीछे से भी . पर स्कूल बस में आते जाते ; लड़कों के कन्धों की रगड़ खा खा कर मुझे पता ही नहीं चला की कब मेरे कूल्हों और छातियों पर चर्बी चढ़ गयी .. बाली उम्र में ही मेरे नितम्ब बीच से एक फांक निकाले हुए गोल तरबूज की तरह उभर गए . मेरी छाती पर भगवन के दिए दो अनमोल 'फल ' भी अब 'अमरूदों ' से बढ़कर मोती मोती 'सेबों ' जैसे हो गए थे . मैं कई बार बाथरूम में नंगी होकर अचरज से उन्हें देखा करती थी .. छू कर .. दबा कर .. मसल कर . मुझे ऐसा करते हुए अजीब सा आनंद आता .. 'वहां भी .. और नीचे भी .

मेरे गोरे चित्ते बदन पर उस छोटी सी खास जगह को छोड़कर कहीं बालों का नमो -निशान तक नहीं था .. हल्के हल्के मेरी बगल में भी थे . उसके अलावा गर्दन से लेकर पैरों तक मैं एकदम चिकनी थी . क्लास के लड़कों को ललचाई नजरों से अपनी छाती पर झूल रहे 'सेबों ' को घूरते देख मेरी जाँघों के बीच छिपी बैठी हल्के हल्के बालों वाली , मगर चिकनाहट से भरी तितली के पंख फद्फदाने लगते और छातियों पर गुलाबी रंगत के 'अनार दाने ' तन कर खड़े हो जाते . पर मुझे कोई फरक नहीं पड़ा . हाँ , कभी कभार शर्म आ जाती थी . ये भी नहीं आती अगर मम्मी ने नहीं बोला होता ,"अब तू बड़ी हो गयी है अंजू .. ब्रा डालनी शुरू कर दे और चुन्नी भी लिया कर !"

सच कहूं तो मुझे अपने उन्मुक्त उरोजों को किसी मर्यादा में बांध कर रखना कभी नहीं सुहाया और न ही उनको चुन्नी से परदे में रखना . मौका मिलते ही मैं ब्रा को जानबूझ कर बाथरूम की खूँटी पर ही टांग जाती और क्लास में मनचले लड़कों को अपने इर्द गिर्द मंडराते देख मजे लेती .. मैं अक्सर जान बूझ अपने हाथ ऊपर उठा अंगडाई सी लेती और मेरी छातियाँ तन कर झूलने सी लगती . उस वक़्त मेरे सामने खड़े लड़कों की हालत ख़राब हो जाती ... कुछ तोह अपने होंटों पर ऐसे जीभ फेरने लगते मनो मौका मिलते ही मुझे नोच डालेंगे . क्लास की सब लड़कियां मुझसे जलने लगी .. हालाँकि 'वो ' सब उनके पास भी था .. पर मेरे जैसा नहीं ..

मैं पढाई में बिलकुल भी अच्छी नहीं थी पर सभी मास्टरों का 'पूरा प्यार ' मुझे मिलता था . ये उनका प्यार ही तोह था की होम -वर्क न करके ले जाने पर भी वो मुस्कुराकर बिना कुछ कहे चुपचाप कॉपी बंद करके मुझे पकड़ा देते .. बाकि सब की पिटाई होती . पर हाँ , वो मेरे पढाई में ध्यान न देने का हर्जाना वसूल करना कभी नहीं भूलते थे . जिस किसी का भी खली पेरिओद निकल आता ; किसी न किसी बहाने से मुझे स्ताफ्फ्रूम में बुला ही लेते . मेरे हाथों को अपने हाथ में लेकर मसलते हुए मुझे समझाते रहते . कमर से चिपका हुआ उनका दूसरा हाथ धीरे धीरे फिसलता हुआ मेरे नितम्बों पर आ टिकता . मुझे पढाई पर 'और ज्यादा ' ध्यान देने को कहते हुए वो मेरे नितम्बों पर हल्की हल्की चपत लगते हुए मेरे नितम्बों की थिरकन का मजा लूटते रहते .. मुझे पढाई के फायदे गिनवाते हुए अक्सर वो 'भावुक ' हो जाते थे , और चपत लगाना भूल नितम्बों पर ही हाथ जमा लेते . कभी कभी तोह उनकी उंगलियाँ स्किर्ट के ऊपर से ही मेरी 'दरार ' की गहराई मापने की कोशिश करने लगती ...

उनका ध्यान हर वक़्त उनकी थपकियों के कारन लगातार थिरकती रहती मेरी छातियों पर ही होता था .. पर किसी ने कभी 'उन् ' पर झपट्टा नहीं मारा . शायद 'वो ' ये सोचते होंगे की कहीं में बिदक न जाऊं .. पर मैं उनको कभी चाहकर भी नहीं बता पाई की मुझे ऐसा करवाते हुए मीठी मीठी खुजली होती है और बहुत आनंद आता है ...

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