Sunday 22 February 2015

सिलसिला 12

 तीसरे दिन सुबह सुबह..........

नौ बजे बाथरूम से नहा कर मैं बाहर निकला ही था कि बेल बजी. मैंने सिर्फ टॉवेल लपेट रखा था. दरवाजा खोला तो संजू थी. वो अन्दर आके बोली... 'भैया एक रिक्वेस्ट करनी थी, प्लीज़ आप मना मत करना.'

'अरे बिंदास बोलो, नहीं करूंगा मना.'.......मैं शीशे के सामने अपने बाल सँवारने लगा.

'वो मैं अपने और ऋतू के लिए सेम सेम ड्रेस लायी थी, क्या आज दोनों वो पहन लें.'

'तुम लोगों ने अपनी ड्रेस के लिए मुझसे इज़ाज़त लेनी कबसे शुरू कर दी है.'

'वो भैया थोड़ी छोटी ड्रेस है, इसलिए इज़ाज़त लेना ज़रूरी समझा.'

'इतनी सी बात है........अरे हमें यहाँ कौन पहचानता है......गो अहेड यार.'

वो थेंक्यु बोल कर ख़ुशी ख़ुशी चली गई और मैं अपने बेग में से कपडे निकलने लगा. मैं शायद एक अंडरवियर काम लाया था तो आज के लिए बची ही नहीं थी. जींस बिना अंडरवियर के कैसे पहनू तो फिर डिसाइड किया कि काटन बरमूडा और टीशर्ट पहन लेता हूँ.

तैयार होकर उनके रूम कि बेल बजायी. अन्दर जाते ही मेरे होश उड़ गए और अब अफ़सोस हो रहा था कि बिना इंक्वायरी के मैंने इन्हें परमिशन क्यों दे दी.

दोनों ने ब्लू रंग की एकदम टाईट ड्रेस पहन रखी थी जो उनके वक्ष से शुरू होकर घुटनों से करीब एक फीट पहले ही समाप्त हो गई. ऊपर जहाँ कंधे, उभारों के ऊपर की छाती और उतनी ही पीठ खुली थी वहीँ नीचे जांघे और टांगे.

हम तीनो ही असहज महसूस करने लगे. ऋतू तो बोल ही उठी.... 'संजू, आई ऍम नॉट कम्फर्टेबल यार, दूसरी पहन लेती हूँ.'

संजू हिम्मत करके बोली.....'अब भैया ने हाँ की तभी तो पहनी, अरे फिर पहनने का मौका कहाँ मिलेगा, यहाँ हमें कौन पहचानता है.......क्यों भैया.'

'चलो आज पहन लो, तुम लोगों का शौक भी पूरा हो जायेगा.....चलो जल्दी से नीचे आओ'..........कहकर मैं चला गया.

दोपहर तक हमने काफी सारी साईट-सीइंग कर ली थी. फिर ४ बजे हम सनसेट पॉइंट पर आ गए. काफी भीड़ होने लगी थी. हम लोगो ने सोचा कि चलो पास की एक पहाड़ी पर चढ़ कर देखेंगे. लेकिन जाने का कोई रास्ता नहीं तो नहीं था पर हमने पगडण्डी वाला एक रास्ता ढून्ढ ही लिया और आसानी से २५-३० फीट ऊँची उस पहाड़ी पर आ गए पर वहां कोई भी नहीं था.

हमने पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर एक चादर बिछाई और आराम से बैठ गए. टाईट और छोटे कपड़ों के कारण उन्हें बहुत प्रोब्लम हो रही थी तो वो दोनों अपनी टाँगे साइड में मोड़ कर बैठ गईं. मैंने दिन भर में मार्क किया कि वे दोनों बार बार अपनी ड्रेस, उभारों के ऊपर खींचती थी कि कहीं खिसक कर वक्ष को खुला ना करदे. पहली बार जो पहनी थी ऐसी ड्रेस.

हम वहीँ बैठे बैठे सन-सेट का नज़ारा लेने लगे. थोड़ी देर के बाद संजू उठ कर एकदम किनारे की ओर चली गई और खड़े होकर देखने लगी. उसके ठीक आगे २०-२५ फीट का खड़ा ढलान था, जो खतरनाक तो नहीं था पर अगर फिसले तो पूरा शरीर छिल कर घायल हो सकता था.

मैं उसे बुलाता रहा पर वो बोली कि आप चिंता ना करें मैं कोई बच्ची थोड़े ही हूँ. परन्तु उसे वहाँ खड़े देखकर मुझे डर बना ही रहा. अंत में मैंने ऋतू को बोला कि वो ऐसे नहीं मानेगी, मैं अभी उसे खींच कर लाता हूँ.

मैं उठ कर धीरे से उसके पीछे पहुंचा. उसे मेरे आने का अहसास हो गया. सहज ही वो चमक एकदम से पलटी. उसका पलटना हुआ और मेरा एन उसके पीछे पहुंचना हुआ.

हडबड़ी में उसका कन्धा मुझसे टकराया और वो लड़ खड़ा कर ढलान में फिसलने लगी. गिरते हुए उसके हाथ मेरे टीशर्ट के गोल गले पर पड़े और उसने मुठ्ठी में भींच लिया. मैंने भी उसे ढलान पर फिसलने से बचाने के लिए उसके दोनों बाजुओं को पकड़ा.

बस यहीं गड़बड़ हो गई....... उसके फिसलते शरीर के वजन से मेरा भी बेलेंस बिगड़ा और मैं भी उसके साथ खींचता चला गया. हम दोनों ही ढलान पर स्लिप होने लगे...मैं पीठ के बल फिसला और वो पेट के बल. उसका पेट मेरे पैरों पर था और उसने छाती से मेरी टीशर्ट भींच रखी थी..........मैं उसकी भुजाओ को कस के पकड़ा हुआ था.

करीब ५ फीट फिसलने के बात मेरा जूता एक पत्थर के नुक्के से सट गया. मैं तो रुक गया पर संजू अपने ही वजन से नीचे सरकती जा रही थी. मेरे हाथों से उसकी बाहें फिसलती हुई निकली जा रही थी. उसका सारा दबाव उसकी मुठ्ठी में जकड़े मेरे कॉटन के पतले से टीशर्ट पर पड़ा और वो बेचारा चर्र्र्रर्र्र्रर से फटने लगा. वो पेट के बल नीचे सरकती ही जा रही थी. मेरे हाथ से उसके हाथ लगभग छूट चुके थे.
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पर तभी उसकी उँगलियों के क्लेम्प मेरे बरमूडा के एलास्टिक में फँस गए और उसके साथ साथ वो भी नीचे सरकने लगा. पीछे से तो वो टाईट फंसा था लेकिन आगे से खिसक कर वो मेरी जांघो तक आ गया और अंदर चड्डी नहीं होने के कारण मेरा चार इंची मुरझाया पप्पू एकदम से उघड गया.

उसकी आँखों के सामने मेरा खुला पप्पू………….. मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होने लगी. इन सबमें हालांकि एक अच्छी बात ये हुई कि अब वो मेरे बरमूडा से लटक कर रुक चुकी थी.

हमारे फिसलते ही ऊपर ऋतू दौड़ कर आई और जब उसने झाँक कर हमें देखा तो उसकी चीख निकल गई. वो बदहवास सी बोली..... ‘भैया संभाले रहना मैं कुछ करती हूँ.’

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