Sunday 22 February 2015

सिलसिला 11

 मैं हटा और फिर उसकी गीली चड्डी को नीचे खींचा. ये उसकी योनी के प्रथम दर्शन थे.

उसकी चिकनी-चपाट योनी अभी भी रह रहकर रस उगल रही थी. इतनी गोरी योनी मैंने पहली बार देखी थी.

अब मैं उसके मुंह की तरफ चला गया. उसने जैसे ही मेरे पप्पू को देखा वो उस पर टूट पड़ी.

अब अजय ने सुझाव दिया कि आगे की कार्यवाही अंदर बेड पर चल कर करते हैं.

डॉली ने मेरा पप्पू छोड़ा और अपने दोनों हाथ बिलकुल छोटे बच्चे की तरह मेरे सामने फैला दिए.

मैंने उसे बिलकुल फूल की तरह अपनी बाँहों में उठा लिया. वो मुझ से कसकर चिपक गई.

उसने अपने पैर मेरी कमर पर इस तरह डाल दिए कि उसकी योनी दरार ठीक मेरे तने पप्पू पर चिपक गई. मेरे चलने से वो उस पर ऊपर नीचे फिसल फिसल कर मज़े लेने लगी.

बेड पर पहुँच कर उसे नीचे टिका कर हटने लगा तो उसने मेरी गर्दन पर से अपनी बाहें और कमर से टाँगे हटाई ही नहीं.

उलटे उसने एक झटका देकर मुझे अपने ऊपर गिरा लिया.

मैंने गिरते ही उसको बाँहों में भर लिया और उसको दबाए हुए झटके से पलट गया.

वो आसानी से मेरे ऊपर आ गई.

अब वो अपनी दरार को मेरे पप्पू पे, बब्बुओं को मेरे सीने पर होंठो को मेरे होंठो पर रगड़ने लगी.

तभी अजय ने उसके नितंबों को पकड़ कर खोला और अपने घुटने मेरी जांघों के दोनों ओर करके, झुकते हुए स्वयं के हथियार को उसकी योनी में पीछे से घुसा दिया.

डॉली ने अपने पुठ्ठे थोड़े हवा में ऊँचे कर दिए ताकि अजय का हथियार आसानी से अंदर बाहर हो सके.

उसका दाना ठीक मेरे पप्पू पर अब और भी जोर से गड कर घिसा रहा था.

मैं उसके रसीले होंठो को चूसते हुए हाथों से उसकी चुन्चियों को उमेठने लगा.

अब वो लगातार घस्से मारे चला जा रहा था. इस दौरान अपने आप ही घस्सो की स्पीड बढ़ रही थी. वो भी अपने कूल्हे उचका उचका कर उसका बराबरी से साथ देने लगी.

अजय ने स्पीड फूल बड़ा दी और कुछ ही देर में वो डकारने लगा.

इतनी तेज़ घस्से चल रहे थे कि डॉली का पूरा वजूद ज़लज़ले की चपेट में आ गया था.

मेरे होंठो से उसके होंठ पता नहीं कब बिछुड़ गए. अब उलटे मैंने डॉली को स्टेबल करने के लिए अपने हाथों से थम लिया था.

घस्से मारते मारते अजय चीखता हुआ झड़ने लगा. उसकी पिचकारी ने जोर जोर से धार मारना चालू कर दी थी.

धीरे धीरे उसकी रफ़्तार कम होती चली गई और अब वो बस हौले हौले डॉली में हिल रहा था.

एक और राउंड की समाप्ति. पहला राउंड जहाँ डॉली के नाम रहा वहीँ दूसरा अजय के. मेरा नंबर देखो कब आता है.

इधर अजय खल्लास हुआ और उधर तब तक डॉली फॉर्म में आ चुकी थी.

वो उसके ढीले होते हथियार को हिल हिल कर और अंदर लेने की कोशिश कर रही थी.

मैं उसके इन डेस्परेट प्रयासों को देख कर उसकी हालत समझ गया कि ये झड़ने के बिलकुल करीब है.
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परदेस से शुरू हुआ चुदाई का



मैंने उसको थोड़ा आगे खींचा. उसका योनी छिद्र मेरे पेट पर चिपके सुपाडे की जद में आया.

अब छेद और सुपाड़े को इस तरह से एडजस्ट किया की पप्पू ठीक नब्बे डिग्री पर तना हुआ था और उसके ठीक ऊपर डॉली का छेद उसे अपने में समां लेने को तैयार. बस देर थी तो डॉली के उस पर दबाव देकर बैठने की.

और अपने ही पल वही हुआ.

मेरी मोटाई उस संकरी सी योनी के लिए थोड़ी ज्यादती थी.

वो चीखती-चिल्लाती आखिर उस पर बैठ ही गई. अब अपने हाथ मेरी छाती पर टिकाये और कमर को इधर उधर हिलाते हुए उसने अंदर घुसे पप्पू को ठीक से एडजस्ट किया.

मैंने अब उसकी कमर थामी और नीचे से हौले हौले तीन चार घस्से मार कर देखा कि रास्ता अंदर तक क्लियर है कि नहीं.

दोनों ने क्वालिटी टेस्ट ओके कर दिया. अब शुरुवाती मूव उसने लिया.

वो धीरे धीरे कमर को गोल गोल घुमा कर पप्पू को मथने लगी. उसके बब्बू भी इस घूर्णन से गतिशील होते हुए सर्कुलर मोशन में झूलने लगे.

उन पर निगाह पड़ते ही मैंने अपने हाथों से उन्हें थाम लिया.

लटके हुए टप्पू ज्यादा बड़े और गुदगुदे महसूस होते हैं, लिहाज़ा उन्हें मसलने में और ज्यादा मज़ा आता है.

उनको अपनी पूरी हथेलियों में भरा और फिर उन्हें पिचकाने लगा.

उसे ज्यादा सेंसेशन की तलाश थी तो उसने अपनी कोहनियाँ बिस्तर पर टिकाई और अपना एक चुच्चा मेरे होंठो के करीब लटका दिया.

इशारा समझते ही मैंने सर उठाया और उसकी निप्पल लपक ली. अब उसने कमर को गोल हिलाने के बजाय हौले हौले से आगे पीछे करना शुरू कर दिया.

मैं तन्मय होकर उसकी चुसाई कर रहा था. उधर नीचे मैं अपने दोनों हाथ उसकी एस-चीक पर ले गया और उन्हें खींच खींच कर उसके छेद पर सरसराहट पैदा करने लगा.

मैंने नीचे से धक्के देने शुरू किये तो वो भी मस्तानी होके उस पर कूदने लगी.

अजय मेरे पेट पर बैठ गया और उसके झूलते झालते बब्बुओं को पकड़ पकड़ कर चूसने लगा. जरा ही देर में वो फिर ढेर हो गई.

वो दोनों मेरे आजू बाजू अपनी पीठ के बल लेट गए.

कुछ देर बाद डॉली मेरे पास आकर चिपक गई और गाल चुमते हुए बोलने लगी........’बहुत करारे हो यार तुम तो......अभी भी झड़े नहीं हो तुम.’ ....मैं हंस दिया.

फिर हम तीनो बैठ गए.

मैंने अजय से पूछा......’यार ये कज़न के साथ कैसे दांव लग गया......ये तो बहन ही है......खराब महसूस नहीं होता.’

अजय बोला....’वो एक दुर्घटना वश हम दोनों एक दूसरे से ओपन हो गए और जब तक ये अहसास होता कि हम भाई बहन हैं हम बहुत नज़दीक आ चुके थे.'

अब या तो आगे बडें या मर्यादा के दायरे के बाहर ही रुक जाये. पर हम दोनों के ही मन में चोर था तो बस, नतीजा तुम देख ही रहे हो. मेरे साथ हिल हिल कर ये तो अब महा-चुदक्कड बन चुकी है.’

तभी डॉली बोली.....’अभि, बताओ कैसे झडना है तुम्हे.’

मैं बोला .........’यार मुझे तो बहुत टाइम लगेगा........तो एक एक करके सभी हथकंडे अपनाओ तुम.’

‘चलो पहले चूस देती हूँ’........और वो झुक कर पप्पू को चूसने लगी. १० मिनट में बुरी तरह हांफने लगी.....उसने निराशा में मुझसे पूछा........’ये पानी छोड़ता है कि नहीं’

मुझे हंसी आ गई.

अब डॉली को नीचे लिटा कर सावधानी से अपना पप्पू उसकी योनी में डाला और घस्से मारते हुए उससे कहा......’जिस वक्त तू पानी छोड़ेगी ठीक उसी समय मैं भी अपनी पिचकारी छोड़ दूँगा.’

अब मैं घनाघन उसे रौंद रहा था........काफी देर तक वो कराह कराह के मज़े लेती रही पर छूटी नहीं. मैं भी मान गया कि दम है उसमे.

अब हम दोनों पलट गए. अब दोनों हाथों में उसकी कमर थामी और नीचे से जोर-जोर से पिस्टन चलने लगा.........वो ‘आई’ ‘आई’ करती रही. पांच मिनट और निकल गए पर वो भी हार नहीं मान रही थी......शायद मेरी बात सुन कर चेलेंज ले लिया था.

मैंने फिर सीन चेंज किया......घोड़ी बनाकर पीछे से धक्कों की बौछार कर दी. अजय उस चौपाये के लटके थनों के नीचे घुस गया और जबरदस्त माउथ-वर्क करने लगा.......

अब डॉली हथियार डालने लगी और जोर जोर से कांपने लगी........मैंने भी अपना गियर चेंज करा और लगा पिचकारी छोड़ने.........

मेरे छींटे उसके नाज़ुक अंग में कस कस के पड़ने लगे और इतनी गर्माहट के अंदर समाने से वो जोर से झड़ने लगी.......

३० सेकंड तक मैं भी झड़ता रहा और बराबरी से वो भी.

मस्ती में मेरा दिमाग सुन्न सा हो गया था.

तूफ़ान के थमने के पश्चात अजय उसके थनों को अपने मुंह से बाहर निकालता हुआ नीचे से बाहर आया.

हम दोनों निचुड कर लुड़क गए.

पांच मिनट के बाद तीनो साथ साथ नहाये.

डॉली तो मेरे पर लट्टू हो गई थी........’बोल रही थी कि इस कदर पहली बार झडी हूँ..........अब हफ्ते में एकाध मुलाकात तो बनती है.’

फिर कुछ देर बाद उन दोनों ने विदा ली.....
६ बज चुके थे. जाते जाते मैंने अजय से फिर पूछा......’यार कज़न के साथ बिना अपराध बोध के ये सब कैसे संभव है.....मेरे तो अभी भी समझ के बाहर है ये बात.’

अजय ने मेरा गाल थपथपाते हुए कहा...........’एक बार तू भी अपनी किसी कज़न के साथ कैसे भी करले....फिर समझ में आएगा कि क्या मज़ा आता है.

इतना ही कहूँगा के इसका सरूर ही अलग है. बेस्ट सेक्स. समझ गया........... चल बाय....सी यू बेक इंडिया’

वे चले गए ......मै आकर पलंग पर लेट गया........मेरे दिमाग में झंझावत सा उठने लगा. आज से एक साल पहले की घटना की याद फिर से ताज़ा होने लगीं ......

पुरे एक महीने तक मैं उस घटना से परेशान होता रहा और अपने आप को माफ नहीं कर पाया था.............

मेरी आँखे बंद होने लगी और पलकों के पर्दों पर वो डीवीडी अपने आप रन होने लगीं.

ऑफिस में मुझे मेरी सगी बहन ऋतू का फोन आया.......’भैया खुशखबरी है....कालेज की ब्यूटी कांटेस्ट में मैं रनर्स-अप् रहीं हूँ.’

‘वाव् कौंग्रेट्स......और संजना का क्या हुआ.’.......मैंने अपनी चचेरी बहन का रिजल्ट पूछा.’

‘होना क्या था.......वो तो अभी भी क्राउन सर पे पहन कर आईने के सामने से हट ही नहीं रही है और मुझे बहुत चिड़ा रही है.....जरा समझाओ तो भैया इसे.’.....और उसने फोन संजना को दे दिया.

‘संजू, मेनी मेनी कोंग्रेचुलेशंस.....’

‘थेंक्यू भैया......और उससे भी बड़ी बात ये है कि हमें महाबलेश्वर का ३ दिन का फ्री होलीडे पैकेज बतौर इनाम मिला है.........मुझे वन प्लस वन और ऋतू को सिंगल. मैं ऋतू को तभी से छेड़ रही हूँ कि मैं तो अपने साथ भैया को ले जाउंगी, भैया मेरे से खुश हो जायेंगे.........................आउउच,’...........संजना के बोलते ही ऋतू ने एक पिल्लो दे मारा उस पर.

मैं उन दोनों की नोक झोंक का आनंद लेता रहा और उन्हें बोला कि चलो मैं आ रहा हूँ शाम को तुम दोनों को बढ़िया ट्रीट देता हूँ.

फिर हम तीनो ने टूर प्लान किया और महाबलेश्वर घूमने निकल गए.

वहाँ हमने ३ दिन के लिए एक SX4 टेक्सी किराये पर कर ली और घूमने लगे. दो दिन कहाँ निकल गए पता ही नहीं चला.

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